Wednesday, September 26, 2018

भोले की नगरी काशी


हर हर महादेव  


इन थोड़े से शब्दों में काशी को परिभाषित नहीं किया जा सकता , परन्तु  बनारस की एक झलक प्रस्तुत करने की मैंने अपनी नाकाम कोशिस है, तो  चलिए ---
बनारस ५००० वर्ष से भी पुरानी  नगरी, विश्व के सबसे प्राचीन शहरों में एक और अलौकिक शहर बनारस का वृतांत एक बनारसी से अच्छा कौन कर सकता है , जो थोड़ी जानकारी मुझे ज्ञात है वो मै वर्णित करने की कोशिस करता हु, कोई त्रुटि हो तो क्षमा कीजियेगा,और नहीं नहीं किये तो का उखाड़ लेंगे , ये जिन्दा शहर जो बनारस  है , यहां सब काम  लौ..... ड़े से होता है ,और भोसड़ी  के तो अभिवादन है।  लगभग २४ हज़ार से भी ज्यादा मंदिरो  का शहर है बनारस।
बनारस शहर नहीं घर है , अपनापन कूट कूट के भरा है। आत्मा की शांति और शुद्धि भी अगर कही  है तो वो बनारस में ही है. 

बनारस को अवीमुक्ता जमीन के नाम भी जाना जाता है जिसका अर्थ जमीन जो कभी शिव से रहित नहीं है।
रुद्रवास भूमि जहां रुद्रा शिव का एक अभिव्यक्ति रहता है ,

यह वह शहर है जहां भगवान बुद्ध ने अपने ज्ञान के बाद अपना पहला समारोह उपदेश दिया था।
वर्तमान में, इसे सारनाथ के नाम से जाना जाता है।

वाराणसी नाम वरुणा और असि असी नदियों के नाम से लिया गया "वाराणसी" नाम है ,जो इस शहर में यहां संगम है।

वाराणसी को महाशमशान के शहर के नाम से भी जानते है क्युकी यहां चिताये कभी बुझती नहीं है।
भारत की सांस्कृतिक राजधानी  के बारे में आपको बताते है  बनारस की प्रसिद्धि किन  किन वजहों से है -

 १ - रामनगर पांडव रोड पर स्थित 8 वीं शताब्दी दुर्गा मंदिर, पास के पेड़ों में रहने वाले सैकड़ों बंदरों का घर है।
२- एक और लोकप्रिय मंदिर संकोमोचन मंदिर है, जो सिमियन-देव हनुमान को समर्पित है।
३- वाराणसी का भारत माता मंदिर शायद भारत का एकमात्र मंदिर है जो 'मदर इंडिया' को समर्पित है। 1936 में महात्मा गांधी द्वारा उद्घाटन किया गया, इसका संगमरमर में नक्काशीदार भारत का एक बड़ा राहत मानचित्र है।
४-पूजा के अन्य महत्वपूर्ण स्थानों में भगवान गणेश का साक्षी विनायक मंदिर, काल भैरव मंदिर, नेपाली मंदिर, नेपाल के राजा द्वारा नेपाली शैली में ललिता घाट पर बनाया गया, पंचगंगा घाट के पास बिंदू माधव मंदिर और ताल्लंग स्वामी मठ
५- एक और नया मंदिर 1964 में भगवान राम के सम्मान में तुलसी मानस मंदिर दुर्गाकुंड नामक स्थान पर बनाया गया था, जहां तुलसीदास ने रामायण के महाकाव्य के सर्वव्यापी संस्करण रामचरितमानों को बनाया था। इस मंदिर की दीवारें भगवान राम के शोषण को दर्शाते हुए दृश्यों और छंदों को सजाती हैं।इसके अलावा
६-काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी में अन्य प्रसिद्ध मंदिर हैं। भगवान शिव को समर्पित प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर में एक लिंगम-शिव का भौतिक प्रतीक है जो महान महाकाव्य के समय वापस जाता है। स्कंद पुराण ने वाराणसी के इस मंदिर को शिव के निवास के रूप में उल्लेख किया है, और इसने मुस्लिम शासकों द्वारा विभिन्न हमलों के हमले को रोक दिया है।
यह दुनिया के सबसे पवित्र शहर के लिए जाना जाता है जहां लाखों आगंतुक गंगा नदी में पवित्र स्नान करने के लिए जाते हैं।
ऐसा माना जाता है की काशी भगवान शिव और देवी पार्वती का घर था और प्रचलित मत है कि यदि मृत्यु के बाद यहां व्यक्ति का दाह संस्कार किया गया हो तो वह मोक्ष प्राप्त कर लेगा। सुप्रसिद्ध हरिश्चंद घाट और माणिकर्णिका घाट हैं जहां दैनिक कई हज़ार मृत शरीर को दफनाया जाता है।


मकर संक्राति शिवरात्रि और होली बनारस के प्रमुख त्योहार है मकर संक्रांति और महा शिवरात्रि के अवसर पर लाखों तीर्थयात्री अपने पापों को धोने के लिए दुनिया भर से आते हैं, गंगा जी में स्नान करके भगवान् की उपासना करते है।


दूसरी तरफ, प्राचीन काल से आज तक एक धार्मिक शहर होने के अलावा यह प्रमुख शिक्षा और सांस्कृतिक केंद्र है। शहर में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय कई देशों के छात्रों के लिए शिक्षा का मुख्य स्रोत है।
संस्कृत की शिक्षा बनारस की प्रमुख शिक्षा हुवा करती थी , आज भी विदेशी मेहमान बनारस में कई वर्षो तक रहकर संस्कृत का अध्ययन कर रहे है।


काशी योग साधना और संस्कृत विद्या का ज्ञान केंद्र रहा है ,यह वह शहर है जहां आयुर्वेद और योग प्राचीन के लिए प्रमुख स्थान ले लिया गया था.



हजारो साल पहले से बनारस व्यापार और वाणिज्य का प्रमुख केंद्र रहा है ,

यहां हिंदी के विश्वप्रसिद्ध लेखक मुंशी प्रेम चंद का भी घर है जिसने हिंदी साहित्य में एक महान नाम अर्जित किया। महान कवि कबीर दास, और संत रवि दास जी जैसे महान विभूतिओं से भरी हुइ नगरी का नाम काशी है। वाराणसी ने सभी सांस्कृतिक गतिविधियों को विकसित करने के लिए सही मंच प्रदान किया है।
यह लिखते हुवे मेरे ह्रदय में जो भाव है वो मै यहाँ परिभासित करने में असमर्थ हूँ।

बनारस बुनकरी और हथकरघा उद्योग में सबसे आगे रहा है.
नरेंद्र मोदी जी जो २०१४ से भारत के प्रधानमंत्री है , उनका संसदीय क्षेत्र काशी ही है , तो उन्होंने वाराणसी में व्यापार और वाण्जिय के प्रोत्साहन के लिए अनेको कदम उठाये है।
सारनाथ: बौद्ध स्थल 


"Banaras is older than history, older than tradition, older even than legend and looks twice as old as all of them put together"- Mark Twain


और BHU बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी कैसे भूल गए , यहां  का पिया मिलम चौराहा और मधुबन पार्क तो इश्क़ फरमाने के लिए प्रसिद्द है। 
यह  वर्ष २०१५  में भारत में नंबर एक विश्वविद्यालय था, वैज्ञानिक आइंस्टीन अमेरिका महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन अपने देशवापसजाने से पहले अपने प्रारंभिक दिनों में यहां पढ़ाना चाहता था ,उन्होंने पंडित मालवीय जी को एक पत्र भी लिखा लेकिन किसी भी तरह से उन्हें समय पर यह नहीं मिला। भौतिक विज्ञानं के महान ज्ञानी नील्स बोहर ने 1962 में भौतिकी विभाग में अतिथि व्याख्यान लिया। भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में भारत छोड़ो आंदोलन और नागरिक अवज्ञा आंदोलन को बीएचयू के छात्रों द्वारा भारी समर्थन दिया गया था और कक्षाएं इन दिनों के दौरान बंद थीं। अब आप बीएचयू के आसपास हवा में राजनीति के पीछे कारण जानते हैं।
 बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय परिसर 


अब आते है काशी के कोतवाल  के बारे में तो ऐसी प्रसिद्धि और मत है कि उनकी अनुमति के बिना कोई भी काशी (वाराणसी) में नहीं रह सकता है।
बनारस में अपना कार्यभार सँभालने से अहले कमिश्नर ,डीएम,  आईजी या कोई भी अधिकारी हो, सबसे पहले कालभैरव मंदिर जाते है , क्योकि वह काशी के संरक्षक है। 
काशी के कोतवाल भगवान कालभैरव मृत्यु के प्रतिक भगवान शिव का भयानक रूप है।
काशी में ऐसी कई चीजें हैं जो आश्चर्यजनक है पृथ्वी पर सबसे पुराना निवास स्थान, भारत की आध्यात्मिक राजधानी,विश्व का सबसे का पवित्र शहर, ज्ञान और सीखने का शहर ..और सबसे अच्छी चीज़ यहां की संस्कृति है , एक ऐसी संस्कृति जो लोगो को आपस में प्यार से जोड़े रहती है , यहां हर काम भाईचारे और आपसी सद्भाव से होता है ,
वाराणसी में अपना कदम रखते ही आप स्थानीय संस्कृति से प्रभावित होंगे और एक चीज़ है हो आप जीवनपर्यन्त नहीं भूलेंगे वो है घाट पर बिताये गए पल ,चाहे सुबह हो या शाम, सुबह - ए - बनारस तो सुप्रसिद्ध है परन्तु शाम को मनमोहक आरती हर किसी का दिल जीत लेती है.
आमतौर पर जब भी मै बनारस जाता हू , अपनी शाम गंगा किनारे ही गुजारता हू , मुझे नहीं पता कि मुझे वहां इतनी शांति क्यों महसूस होती है , ये मेरा कुछ अनुभव है जो मैंने आपके साथ साझा किया है।
एक शाम बनारस के नाम 

काशी वह जगह है जहां आप अपने जीवन की सच्चाई को बहुत ही आसानी से पा सकते है।
सुकून के पल 





 नंबर वन यारी : छायाचित्र २०१३ की यादो से 



An Independent Life, Journey toward Struggle

raghavendraWell let me explain in few word ,when I haven't word to express what's going inside me, if I feel ignored I choose write my feelings in my notes ~digital notebook 😊 and after that love to post on my wall, its really gives me peace for a while, I honestly don’t know what I want in life, I don’t even know what I want right now, All I know is that it hurts so much inside, and it’s eating me alive,One day there won’t be anything left of me Sometimes, you just need that one person to tell you that you aren’t as bad as you think you are, And this point to be noted , The very worst kind of sadness is the kind that doesn’t have an explanation because It’s hard to answer the question what’s wrong? My Life is just like music of my gallery I enjoy music when I am happy. But I understand the lyrics when I feel sad.I really want to be happy, but there’s something inside me that screams that you don’t deserve it. fuck, I’m not really sad.But late at night when I’m alone, or when I fill pressure , I usually go on the rooftop and I just forget how to feel. I really don't why. I feel empty I feel completely lost in my own mind. I bottle up my emotions until I burst and in this situation I love to blow a cigarette and lose my feelings anxiety and all pressure .this is my life , kindly ignore grammatical error and also my thought about life.

Enjoy every moment of your life,live like today is your last day.

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Wednesday, September 14, 2016

शहाबुद्दीन

शहाबुद्दीन बाहर  आया है, सिवान का काल वापस आया है

September 14, 2016
जिला सिवान, साल 1996, एक इंसान चंदा बाबु, गल्ला पट्टी बड़ा बाजार इलाके में एक किराना दुकान थी, वहीं बगल में चंदा बाबु का घर भी था, अच्छा-खासा बड़ा परिवार, पति-पत्नी, चार बेटे-दो बेटियां। काफी मेहनती आदमी थे चंदा बाबु, इसी मेहनत के दम पे उन्होंने बड़हरिया स्टैंड के पास एक कट्ठा, नौ धुर जमीन रामनाथ गौंड से रजिस्ट्री करायी। यहाँ छ दुकानदारों का कब्ज़ा था, चंदा बाबु के कहने पर पांच ने तो दुकान खाली कर दी मगर छठे शख्स नागेंद्र तिवारी ने खाली नहीं किया। चंदा बाबु ने जमीन पे दुकान खोली और गोदाम भी बनवा दिया, उद्धघाटन समारोह में इलाके के बाहुबली नेता शहाबुद्दीन और मंत्री अवध बिहारी चौधरी को भी बुला लिया, सब ठीक ही चल रहा था।

2004 में चंदा बाबु ने सोचा की दुकान का निर्माण नए तरीके से करवाना चाहिए लेकिन इसके लिए नागेंद्र का खाली करना जरुरी था। अब चंदा बाबु और नागेंद्र के बीच ठन गयी, नागेंद्र समझ गया कि दुकान तो उसके हाथ से गयी। उसने भी एक आखरी दावँ खेला, नकली कागजात बनवाये और दुकान मदन शर्मा को बेच दी, वैसे तो मदन पेशे से मैकेनिक था लेकिन उसके तालुकात शहर के दबंगों से थे।

चंदा बाबु को जब पूरी कहानी पता चली तो उन्होंने दुकान पर अपना ताला जड़ दिया, उसी रात उन्हें फ़ोन पे धमकी मिली की दुकान छोड़ दो नहीं तो अंजाम बुरा होगा। धमकी का असर भी हुआ और अगले ही दिन लगभग आधा दर्जन लोग उनके घर पहुँचे, गाली-गलौच की और चाभी छीनकर दुकान खोल दी। उन लोगों ने कहा कि अगर दुकान नहीं देना चाहते हो तो दो लाख दे दो हम कुछ नहीं करेंगे, ऐसा साहेब का आदेश है(साहेब यानि शहाबुद्दीन)। चंदा बाबु को लगा की साहेब उनकी दुकान का उद्धघाटन करने आये थे तो अब उनकी समस्या का समाधान भी करेंगे।

12अगस्त 2004, दिन था गुरुवार, चंदा बाबु सिवान जेल पहुंचे, साहेब से कहा कि वे दुकान किराये पे देंगे मगर रजिस्ट्री नहीं करेंगे और दो लाख भी नहीं देंगे इतना सुन के साहेब को गुस्सा आ गया और गुस्से में चंदा बाबु से कहा की सामने से हट जाओ। चंदा बाबु उदास होकर घर आ गए मगर तय किया की दो लाख नहीं देंगे, 14अगस्त को पता चला की उनके भाई की पत्नी को पटना में लड़का हुआ है, चंदा बाबु उसी दिन पटना के लिए निकल गए आगे क्या होने वाला है इस बात से बेखबर।

16 अगस्त की सुबह करीब 10 बजे आफताब, झब्बू मियां, राजकुमार साह, शेख असलम, मोनू उर्फ आरिफ हुसैन, मकसूद मियां समेत एक दर्जन लोग चंदा बाबु की दुकान पहुँचे, वहां उनके दो बेटे राजीव रौशन और सतीश राज मौजूद थे। उनलोगों ने पैसों की मांग की तो राजीव ने जवाब दिया की वे सिर्फ खर्चा-पानी दे सकता है। इतना सुनते ही वे लोग राजीव पे टूट पड़े और उसपे लात-घूंसों की बौछार कर दी, छोटा भाई सतीश अपने भाई को पीटते नहीं देख सका  और भागते हुए गोदाम के अंदर गया, वहां उसने शौचालय साफ़ करनेवाला एसिड जोकि उसके दुकान में बिकता था उठाया और मारपीट कर रहे लोगों पर फेंक दिया। राजीव पे भी कुछ छिंटे पड़े मगर वह उनके चंगुल से निकलकर बगलवाले मकान में छुप गया। बदमाशों के हत्थे चढ़ गया सतीश, उसे खींच कर उन्होंने बोलेरो में बैठा लिया और अपने साथ ले गए।

चंदा बाबु के बेटों ने अपने बचाव में शहाबुद्दीन से पंगा ले लिया था। एसिड के छींटे उन दबंगों पर पड़े थे जिनके नाम से पूरा सिवान काँपता था, बात जेल के सलाखों के पीछे कैद साहेब के कानों में भी पहुंची। साहेब की भृकुटि तन गयी, चेहरा गुस्से से लाल, ये तो सीधे-सीधे उनको चुनौती थी, आदेश हुआ, “तेजाब का बदला तेजाब से लिया जायेगा और ये सजा साहेब खुद देंगे।”

सतीश तो कब्जे में था ही, तलाश शुरू हुई राजीव की, नहीं मिला तो बड़हरिया गाँव में लूटपाट की और दुकानों में आग लगा दी फिर बदमाश पहुंचे गल्ला पट्टी, जहाँ चंदा बाबु की पुरानी दुकान थी। वहां पे चंदा बाबु का दूसरा लड़का गिरीश मौजूद था, दबंगों ने उसे ही जबरदस्ती बाइक पे बैठा लिया। इधर राजीव भी छुपते-छुपाते कचहरी पंहुचा, वहां कुछ लोगों से बात की और दक्षिण टोला के तरफ जा रहा था तभी रामराज रोड के पास वो भी पकड़ा गया। अब तीनों भाई शहाबुद्दीन के कब्जे में थे, उन्हें उसके गांव परतापुर ले जाया गया

बदले की आग में जल रहा शहाबुद्दीन सलाखों से निकल कर अपने घर पहुंचा और तीनों गुस्ताखों को उसके सामने पेश किया गया, शहाबुद्दीन और उनके लोगों ने गिरीश(22वर्ष) और सतीश(20वर्ष) को जिन्दा तेजाब से नहला दिया। वह दोनों जल कर राख हो गए और राजीव दिल पे पत्थर रख के इस खौफनाक मंजर को देखता रहा, आप उसकी दशा का अंदाजा भर लगा के सिहर उठेंगे, ठीक वैसे ही जैसे मेरे हाथ काँप रहे हैं इस कहानी को लिखते हुए। राजीव को समझ में आ गया कि वे लोग चंदा बाबु को पैसे देने के बहाने बुला के उन दोनों को भी मार डालेंगे, वह मौके की तलाश में था देर रात उसे मौका मिला और वह उनके चंगुल से भाग निकला।

इधर शहर में सुबह से शाम तक घटना की चर्चा होती रही। लोग खुल कर बोल तो नहीं पा रहे थे, लेकिन उनका दिल तड़प रहा था। सिवान के ही मुसाफिर चौधरी ने हिम्मत जुटाई और चौक-चौराहों पर खुलेआम बोल दिया की चंदा बाबु के बेटों को इतनी निर्ममता से नहीं मारना चाहिए था। यह बात साहेब के लोगों को पता चली, चंद मिनटों के अंदर ही उनकी गोली मार कर हत्या कर दी गयी। अब तो सबकी जुबान पर ताला लग गया।

चंदा बाबु का पूरा परिवार तितर-बितर हो गया, चंदा बाबु पटना में छुपे रहे और पत्नी कलावती देवी बाकि बच्चों को लेकर अपने गांव छपरा आ गईं । घटना के बाद कलावती देवी के आवेदन पर पहले अज्ञात लोगों पर अपहरण और हत्या का मामला दर्ज हुआ और बाद में शहाबुद्दीन का नाम डाला गया। आठ महीने तक परिवार के सदस्य आपस में मिल भी ना सके, फिर राजीव किसी तरह अपने घरवालों से मिला और पूरी कहानी सुनाई, कई महीने बाद चंदा बाबु ने बेटों का दाह संस्कार गायत्री परिवार के माध्यम से किया।

2011 में राजीव ने हिम्मत जुटाई और घटना के चश्मदीद गवाह के रूप में पेश हो गया, सुनवाई पे सुनवाई चलती रही। 19 जून 2014 को राजीव को फिर चश्मदीद के रूप में पेश होना था मगर 16जून, 2014 को डीएवी मोड़ के पास अपराधियों ने राजीव की गोली मार कर हत्या कर दी।

कहानी अच्छी थी ना? काश ये कहानी ही होती, लेकिन ये तोमैंने हकीकत बयां की है सीवान जिले की, यह बतलाने कीकोशिश की है कि ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर‘ बहुतों के लिए एककल्ट सिनेमा होगा मगर सिवान के बाशिंदों के लिए तो उनकेजीवन जिया आईना था। उन्हें उस समय की याद जरूर आईहोगी जब बिहार में दो सरकारें काम करती थी, एक पटना कीसरकार और दूसरी सिवान  में शहाबुद्दीन

80 के दशक में शहाबुद्दीन पे पहली बार मुकदमा दर्ज हुआ था, इसके बाद तो मुकदमों की बाढ़ सी आ गयी। उसके हौसलों को हद से ज्यादा बढ़ते देख पुलिस ने उसे हिस्ट्रीशीटर घोषित कर दिया। राजनीतिक गलियारों में शहाबुद्दीन का उदय तब हुआ जब लालू यादव की छत्रछाया में उसने जनता दल की युवा इकाई में कदम रखा, 1990 में विधानसभा का टिकट मिला, जीत दर्ज की, फिर 1995 का चुनाव भी जीत गया। 1996 में शहाबुद्दीन को लोकसभा का टिकट मिला और उसने जीत का सिलसिला बरकरार रखा। 1997 में राजद के गठन के बाद लालू यादव की सरकार बन जाने से शहाबुद्दीन की ताकत और बढ़ गयी।

शहाबुद्दीन कानून से नहीं डरता था, वह खुद ही कानून बनाता था, सिवान जिले में बगैर उसकी इजाजत के पत्ता तक नहीं हिलता था। पुलिस अधिकारियों पर हाथ उठा देने में भी शहाबुद्दीन को कोई हिचक नहीं होती थी। एक बार तो एक अधिकारी संजीव कुमार और अन्य पुलिसवालों को शहाबुद्दीन और उसके आदमियों ने खूब पीटा, इस घटना से सकते में आया पुलिस प्रशासन तुरंत हरकत में आ गया। बिहार और उत्तर प्रदेश पुलिस की संयुक्त टुकड़ियों ने शहाबुद्दीन को गिरफ्तार करने के मकसद से उसके घर पर छापेमारी की। इस करवाई में 10पुलिसवाले मरे गये और “साहेब” फरार हो गए, मौके पे से 3 ऐके-47 भी बरामद हुई थी।

वक्त बदला, बिहार में बदलाव की दस्तक हुई, नितीश कुमार सत्ता में आये। राजद को बिहार की राजनीति से उखाड़ फेंका और शहाबुद्दीन पे भी शिकंजा कस गया। एक के बाद एक फाइलें खुलने लगी, बिहार पुलिस की स्पेशल टीम ने शहाबुद्दीन को दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी था कि प्रतापपुर में उसके घर से छापेमारी के दौरान सेना के नाईट विज़न डिवाइस और पाकिस्तान में बने हुए हथियार भी मिले थे। “कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि शहाबुद्दीन के पाकिस्तान में अच्छे संपर्क थे।” कोर्ट ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई और वर्ष 2009 में उसके चुनाव लड़ने पे भी रोक लगा दी। इसी तरह नितीश कुमार सिवान  के लोगों के लिए मसीहा का रूप धरकर आये और शहर के लोगों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई।

लेकिन वक्त ने एक बार फिर करवट ली, नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और भाजपा का गठबंधन टूट गया, नीतीश ने लालू के साथ महागठबंधन बनाया और 2015 विधानसभा में शानदार वापसी भी की। वापसी असल में लालू यादव की हुई थी और जब लालू आये तो शहाबुद्दीन का भी बहार निकलना तय माना जा रहा था। वैसे तो ये गठबंधन होते ही शहाबुद्दीन के खौफ सिवान  में दोबारा आ गया था , राजीव की हत्या के साथ। शहाबुद्दीन जेल से अपना राज चला ही रहा था लेकिन शनिवार को वह आधिकारिक रूप से बाहर आ गया। उसके बाहर आते ही पटना से दिल्ली तक हलचल मच गई,चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया।

शहाबुद्दीन ने भी बहार निकलते ही नीतीश को धत्ता बतलाते हुए लालू को अपना नेता माना और नितीश पे खूब निशाना साधा। जब मीडियावालों ने नीतीशजी से इस बाबत पूछा तो उन्होंने इन बातों को महत्वहीन करार दे दिया परन्तु कोई भी समझदार व्यक्ति नितीश कुमार के हावभाव से उनकी मज़बूरी समझ सकता है। कभी बिहार में लालू के जंगलराज को खुली चुनौती देने वाला शख्स आज इतना मजबूर हो चुका है कि कोई प्रतिकिर्या भी नहीं दे सकता मगर फिर भी मुझे नितीश कुमार से कोई संवेदना नहीं है। वह खुद की करनी का फल भुगत रहे हैं ।

आज शहाबुद्दीन बाहर नहीं आया है सिवान का काल वापसआया है।

यह बिहार में जंगलराज-2 की आधिकारिक घोषणा ही है, अब उन परिवारों पर पल-पल खतरा मंडरा रहा है  जिन्होंने शहाबुद्दीन पे केस दर्ज करवाया है।

नितीश जी आपको हर किसी को हिसाब देना होगा, उनजेडीयू कार्यकर्ताओं को आप भूल गए जो सिवान में मारे गए,उन लोगों की कहानियां भूल गए आप, उन निर्मम हत्याओं कोभूल गए?

क्या यही आपकी साफ़ छवि वाली राजनीति है? अगर ऐसा है तो फिर धिक्कार है आपको, नितीश जी आपने बिहारियों की उम्मीद को ताड़-ताड़ कर दिया है। वो उम्मीद जो वो आपसे लगाये बैठे थे की आप हैं तो फिर बिहार तरक्की के रास्ते पे ही चलेगा। शायद आपको वोट देने वाले आपका असली चेहरा नहीं देख पाए, वो चेहरा जो कुर्सी के लिए अपना ईमान बेच देता है, जी हां आपने अपना ईमान बेच दिया है और अब आपके साथ-साथ पूरे बिहार को भुगतना होगा।







Saturday, September 3, 2016

Narendra Modi

NarendraModi
#प्रधानमंत्रीजी का इंटर्व्यू -Network18
•सरकार बनने के बाद मैंने देश से निराशा का माहौल खत्म किया : पीएम मोदी
•देश आजाद होने के बाद GST के रूप में सबसे बड़ा बिल आया : पीएम मोदी
•बीमार अर्थव्यवस्था को तेज रफ्तार दी : पीएम मोदी
•जीएसटी से केंद्र और राज्यों के बीच अविश्वसनीयता का माहौल भी खत्म होगा : पीएम मोदी
•भारत को लेकर आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक का भरोसा भी बढ़ा है : पीएम मोदी
•आज भारत का डंका सारी दुनिया में बज रहा है : पीएम मोदी
•इस बार भारत की अर्थव्यवस्था को मौसम ने पूरा सपोर्ट किया है : पीएम मोदी
•देश में कारोबार करना अब पहले से आसान हुआ है : पीएम मोदी
•रिफॉर्म, परफॉर्म, ट्रांसफॉर्म और इन्फॉर्म मेरी सरकार का लक्ष्य : पीएम मोदी
•अब सामान्य आदमी की जिंदगी पहले से अधिक आसान हो गई है : पीएम मोदी
•मैंने बदहाली का कच्चा चिट्ठा नहीं खोला : पीएम मोदी
•मुझे देश का पहला बजट पेश करने से संसद में पहले देश की राजनीति पर एक श्वेतपत्र लाना चाहिए था : पीएम मोदी
•मैं कमियां देखकर भी उन्हें ठीक करने का पूरा प्रयास करता हूं : पीएम मोदी
•मैं कभी बदले की भावना से काम नहीं करता : पीएम मोदी
•मैंने राजनीतिक कारणों से कभी किसी के खिलाफ फाइल खोलने का निर्देश नहीं दिया : पीएम मोदी
•ब्लैक मनी पर नया कानून बनने के बाद अब विदेशों में धन भेजने वाले बच नहीं पाएंगे : पीएम मोदी
•देश की जनता में मेरी सरकार को लेकर कोई कन्फ्यूजन नहीं है : पीएम मोदी
•किसी भी सभ्य समाज को साम्प्रदायिक हिंसा और दलितों पर अत्याचारों जैसे मामलों से बचना चाहिए : पीएम मोदी
•जातिवाद के जहर से देश से बर्बाद हो रहा है: पीएम मोदी 
•सामाजिक एकता को बनाए रखने के लिए सभी को संभलकर बोलना चाहिए : पीएम मोदी 
•अर्थव्यवस्था की प्रगति के लिए देश और समाज में एकता एवं समरता जरूरी : पीएम मोदी
•गरीबों और गरीबी के नाम पर हमारे देश में जमकर राजनीति हुई है : पीएम मोदी 
•गरीबी से मुक्ति पाने के लिए गरीबों को सशक्त करना होगा : पीएम मोदी 
•शिक्षा और रोजगार से ही गरीबी से मुक्ति पाई जा सकती है : पीएम मोदी 
•दलित, आदिवासी और महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए मैंने बैंकों को निर्देश दिए हैं : पीएम मोदी
•स्किल डेवलपमेंट आज वक्त की सबसे बड़ी मांग है : पीएम मोदी 
•हर चीज फायदे और नुकसान के तराजू में नहीं तौलनी चाहिए : पीएम मोदी 
•हर चीज को चुनाव से जोड़कर देखना हमारे देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य : पीएम मोदी 
•वोट बैंक की राजनीति देश के विकास के लिए घातक : पीएम मोदी 
•भाजपा ने हमेशा विकास के मुद्दे पर ही चुनाव लड़ा है और आगे भी लड़ती रहेगी : पीएम मोदी 
•विकास और विश्वास से ही कश्मीर समस्या का हल संभव : पीएम मोदी 
•भ्रष्टाचार खत्म करना हमारी सरकार का सबसे बड़ा लक्ष्य : पीएम मोदी 
•अब यूरिया की कालाबाजारी पूरी तरह रुक गई है : पीएम मोदी 
•टेक्नोलॉजी और अकांटेबिलिटी और नीति आधारित कामों से भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना संभव है : पीएम मोदी
•प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, मैंने कभी मीडिया को मसाला नहीं दिया
•मुझे यहां तक पहुंचाने में मीडिया का बड़ा योगदान रहा है : पीएम मोदी
•मुझे गाली देने वालों को मैदान में लाकर भी टीआरपी बढ़ाता है मीडिया : पीएम मोदी
•असली-नकली मोदी कुछ नहीं होता, मेरे अंदर भी एक इंसान है: पीएम मोदी
•किसी भी बात सुनना और समझना मेरे स्वभाव का हिस्सा है : पीएम मोदी
•मुझे जानने के लिए आपको राजनीतिक चश्मा अलग रखना होगा : पीएम मोदी
•मैं पुराने दिनों का बोझ अपने पास नहीं रखता : पीएम मोदी
•मुझे काम से कभी थकान नहीं होती, काम करने का संतोष होता है : पीएम मोदी
•विवेकानंद जी के विचारों का मुझ पर काफी प्रभाव रहा है : पीएम मोदी 
•हारने से भी खिलाड़ियों की मेहनत और तपस्या कभी कम नहीं होती, मीडिया को उनकी तपस्या देश को दिखानी चाहिए: पीएम मोदी 
•मेरी यही इच्छा है कि मैं सवा सौ करोड़ भारतीयों में पूरी तरह खो जाऊं उनके लिए खप जाऊँ: पीएम नरेंद्र मोदी

Saturday, March 26, 2016

संवेदना , मानवता

मोहन काका डाक विभाग के कर्मचारी थे। बरसों से वे माधोपुर और आस पास के गाँव में चिट्ठियां बांटने का काम करते थे।


एक दिन उन्हें एक चिट्ठी मिली, पता माधोपुर के करीब का ही था लेकिन आज से पहले उन्होंने उस पते पर कोई चिट्ठी नहीं पहुंचाई थी।

रोज की तरह आज भी उन्होंने अपना थैला उठाया और चिट्ठियां बांटने निकला पड़े। सारी चिट्ठियां बांटने के बाद वे उस नए पते की ओर बढ़ने लगे।
दरवाजे पर पहुँच कर उन्होंने आवाज़ दी, “पोस्टमैन!”

अन्दर से किसी लड़की की आवाज़ आई, “काका, वहीं दरवाजे के नीचे से चिट्ठी डाल दीजिये।”

“अजीब लड़की है मैं इतनी दूर से चिट्ठी लेकर आ सकता हूँ और ये महारानी दरवाजे तक भी नहीं निकल सकतीं !”, काका ने मन ही मन सोचा।


“बहार आइये! रजिस्ट्री आई है, हस्ताक्षर करने पर ही मिलेगी!”, काका खीजते हुए बोले।

“अभी आई।”, अन्दर से आवाज़ आई।

काका इंतज़ार करने लगे, पर जब 2 मिनट बाद भी कोई नहीं आयी तो उनके सब्र का बाँध टूटने लगा।

“यही काम नहीं है मेरे पास, जल्दी करिए और भी चिट्ठियां पहुंचानी है”, और ऐसा कहकर काका दरवाज़ा पीटने लगे।

कुछ देर बाद दरवाज़ा खुला।

सामने का दृश्य देख कर काका चौंक गए।

एक 12-13 साल की लड़की थी जिसके दोनों पैर कटे हुए थे। उन्हें अपनी अधीरता पर शर्मिंदगी हो रही थी।

लड़की बोली, “क्षमा कीजियेगा मैंने आने में देर लगा दी, बताइए हस्ताक्षर कहाँ करने हैं?”

काका ने हस्ताक्षर कराये और वहां से चले गए।

इस घटना के आठ-दस दिन बाद काका को फिर उसी पते की चिट्ठी मिली। इस बार भी सब जगह चिट्ठियां पहुँचाने के बाद वे उस घर के सामने पहुंचे!

“चिट्ठी आई है, हस्ताक्षर की भी ज़रूरत नहीं है…नीचे से डाल दूँ।”, काका बोले।

“नहीं-नहीं, रुकिए मैं अभी आई।”, लड़की भीतर से चिल्लाई।

कुछ देर बाद दरवाजा खुला।

लड़की के हाथ में गिफ्ट पैकिंग किया हुआ एक डिब्बा था।

“काका लाइए मेरी चिट्ठी और लीजिये अपना तोहफ़ा।”, लड़की मुस्कुराते हुए बोली।

“इसकी क्या ज़रूरत है बेटा”, काका संकोचवश उपहार लेते हुए बोले।

लड़की बोली, “बस ऐसे ही काका…आप इसे ले जाइए और घर जा कर ही खोलियेगा!”

काका डिब्बा लेकर घर की और बढ़ चले, उन्हें समझ नहीं आर रहा था कि डिब्बे में क्या होगा!

घर पहुँचते ही उन्होंने डिब्बा खोला, और तोहफ़ा देखते ही उनकी आँखों से आंसू टपकने लगे।

डिब्बे में एक जोड़ी चप्पलें थीं। काका बरसों से नंगे पाँव ही चिट्ठियां बांटा करते थे लेकिन आज तक किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया था।

ये उनके जीवन का सबसे कीमती तोहफ़ा था…काका चप्पलें कलेजे से लगा कर रोने लगे; उनके मन में बार-बार एक ही विचार आ रहा था- बच्ची ने उन्हें चप्पलें तो दे दीं पर वे उसे पैर कहाँ से लाकर देंगे?

दोस्तों, संवेदनशीलता या sensitivity एक बहुत बड़ा मानवीय गुण है। दूसरों के दुखों को महसूस करना और उसे कम करने का प्रयास करना एक महान काम है। जिस बच्ची के खुद के पैर न हों उसकी दूसरों के पैरों के प्रति संवेदनशीलता हमें एक बहुत बड़ा सन्देश देती है। आइये हम भी अपने समाज, अपने आस-पड़ोस, अपने यार-मित्रों-अजनबियों सभी के प्रति संवेदनशील बनें…आइये हम भी किसी के नंगे पाँव की चप्पलें बनें और दुःख से भरी इस दुनिया में कुछ खुशियाँ फैलाएं!😊

Thursday, March 17, 2016

अंदाज बनारसी

एक बार एक अंग्रेज बनारस घुमने आया। घुमते- घुमते गोदौलिया में एक मिठाई दुकान में गया, और वहाँ हड़िया (हांडी) में रखा दही देख के पुछा...
अंग्रेज:-  What is This ?
हलवाई:- This is दही हव सर।
अंग्रेज:- What is Dahi, मैन?
हलवाई:- दूध स्लीप विथ जोरन at night, सर एंड Morning Become भेरी Tight.
इट स्वाद इज खटरूस वेन इटिंग।
यु केन इट विथ सुगर एंड निमक बोथ ।
इफ यु इट छूछे देन योर दाँत बिकम कोठ।
ओके अंडरस्टैंड मालिक...
😋😋😋😜

Tuesday, December 29, 2015

राम मंदिर का दर्दनाक इतिहास

अयोध्या की कहानी जिसे
पढ़कर आप रो पड़ेंगे।
कृपया इस
लेख को पढ़ें, तथा प्रतेक
हिन्दूँ मिञों को अधिक से
अधिक शेयर करें।
जब बाबर
दिल्ली की गद्दी पर
आसीन हुआ उस समय
जन्मभूमि सिद्ध महात्मा श्यामनन्द जी महाराज के
अधिकार क्षेत्र में थी। महात्मा श्यामनन्द
की ख्याति सुनकर ख्वाजा कजल अब्बास
मूसा आशिकान
अयोध्या आये । महात्मा जी के शिष्य बनकर
ख्वाजा कजल अब्बास मूसा ने योग और सिद्धियाँ प्राप्त
कर ली और उनका नाम
भी महात्मा श्यामनन्द के
ख्यातिप्राप्त शिष्यों में लिया जाने लगा।
ये सुनकर
जलालशाह नाम का एक फकीर भी
महात्मा श्यामनन्द के पास आया और उनका शिष्य बनकर
सिद्धियाँ प्राप्त करने लगा।
जलालशाह एक कट्टर मुसलमान था, और उसको एक
ही सनक थी,
हर जगह इस्लाम का आधिपत्य साबित करना । अत:
जलालशाह ने अपने काफिर गुरू की पीठ
में छुरा घोंपकर
ख्वाजा कजल अब्बास मूसा के साथ मिलकर ये विचार
किया की यदि इस मदिर को तोड़ कर मस्जिद
बनवा दी जाये तो इस्लाम का परचम हिन्दुस्थान में
स्थायी हो जायेगा। धीरे धीरे
जलालशाह और
ख्वाजा कजल अब्बास मूसा इस साजिश को अंजाम देने
की तैयारियों में जुट गए ।
सर्वप्रथम जलालशाह और ख्वाजा बाबर के
विश्वासपात्र बने और दोनों ने अयोध्या को खुर्द
मक्का बनाने के लिए जन्मभूमि के आसपास
की जमीनों में
बलपूर्वक मृत मुसलमानों को दफन करना शुरू किया॥ और
मीरबाँकी खां के माध्यम से बाबर
को उकसाकर मंदिर के
विध्वंस का कार्यक्रम बनाया। बाबा श्यामनन्द
जी अपने मुस्लिम शिष्यों की करतूत देख
के बहुत दुखी हुए
और अपने निर्णय पर उन्हें बहुत पछतावा हुआ।
दुखी मन से
बाबा श्यामनन्द जी ने
रामलला की मूर्तियाँ सरयू में
प्रवाहित किया और खुद हिमालय की और
तपस्या करने
चले गए। मंदिर के पुजारियों ने मंदिर के अन्य सामान
आदि हटा लिए और वे स्वयं मंदिर के द्वार पर
रामलला की रक्षा के लिए खड़े हो गए। जलालशाह
की आज्ञा के अनुसार उन चारो पुजारियों के सर काट
लिए गए. जिस समय मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाने
की घोषणा हुई उस समय
भीटी के राजा महताब सिंह
बद्री नारायण की यात्रा करने के लिए
निकले
थे,अयोध्या पहुचने पर रास्ते में उन्हें ये खबर
मिली तो उन्होंने अपनी यात्रा स्थगित कर
दी और
अपनी छोटी सेना में रामभक्तों को शामिल
कर १ लाख
चौहत्तर हजार लोगो के साथ बाबर की सेना के ४
लाख
५० हजार सैनिकों से लोहा लेने निकल पड़े।
रामभक्तों ने सौगंध ले रक्खी थी रक्त
की आखिरी बूंद तक
लड़ेंगे जब तक प्राण है तब तक मंदिर नहीं गिरने
देंगे।
रामभक्त वीरता के साथ लड़े ७० दिनों तक घोर संग्राम
होता रहा और अंत में राजा महताब सिंह समेत
सभी १
लाख ७४ हजार रामभक्त मारे गए। श्रीराम
जन्मभूमि रामभक्तों के रक्त से लाल हो गयी। इस
भीषण
कत्ले आम के बाद मीरबांकी ने
तोप लगा के मंदिर गिरवा दिया । मंदिर के मसाले से
ही मस्जिद का निर्माण हुआ
पानी की जगह मरे हुए
हिन्दुओं का रक्त इस्तेमाल किया गया नीव में
लखौरी इंटों के साथ ।
इतिहासकार कनिंघम अपने लखनऊ गजेटियर के 66वें अंक के
पृष्ठ 3 पर लिखता है की एक लाख चौहतर हजार
हिंदुओं
की लाशें गिर जाने के पश्चात
मीरबाँकी अपने मंदिर
ध्वस्त करने के अभियान मे सफल हुआ और उसके बाद
जन्मभूमि के चारो और तोप लगवाकर मंदिर को ध्वस्त कर
दिया गया..
इसी प्रकार हैमिल्टन नाम का एक अंग्रेज
बाराबंकी गजेटियर में लिखता है की "
जलालशाह ने
हिन्दुओं के खून का गारा बना के
लखौरी ईटों की नीव
मस्जिद बनवाने के लिए
दी गयी थी।
उस समय अयोध्या से ६ मील
की दूरी पर सनेथू नाम
का एक गाँव के पंडित देवीदीन पाण्डेय ने
वहां के आस
पास के गांवों सराय सिसिंडा राजेपुर आदि के सूर्यवंशीय
क्षत्रियों को एकत्रित किया॥ देवीदीन
पाण्डेय ने
सूर्यवंशीय क्षत्रियों से कहा भाइयों आप लोग मुझे
अपना राजपुरोहित मानते हैं ..अप के पूर्वज
श्री राम थे
और हमारे पूर्वज महर्षि भरद्वाज जी। आज
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम
की जन्मभूमि को मुसलमान
आक्रान्ता कब्रों से पाट रहे हैं और खोद रहे हैं इस
परिस्थिति में हमारा मूकदर्शक बन कर जीवित रहने
की बजाय जन्मभूमि की रक्षार्थ युद्ध
करते करते
वीरगति पाना ज्यादा उत्तम होगा॥
देवीदीन पाण्डेय
की आज्ञा से दो दिन के भीतर ९०
हजार क्षत्रिय इकठ्ठा हो गए दूर दूर के गांवों से लोग
समूहों में इकठ्ठा हो कर देवीदीन
पाण्डेय के नेतृत्व में
जन्मभूमि पर
जबरदस्त धावा बोल दिया । शाही सेना से लगातार ५
दिनों तक युद्ध हुआ । छठे दिन
मीरबाँकी का सामना देवीदीन
पाण्डेय से हुआ उसी समय
धोखे से उसके अंगरक्षक ने एक
लखौरी ईंट से पाण्डेय
जी की खोपड़ी पर वार कर
दिया। देवीदीन पाण्डेय का सर
बुरी तरह फट
गया मगर उस वीर ने अपने पगड़ी से
खोपड़ी से बाँधा और
तलवार से उस कायर अंगरक्षक का सर काट दिया।
इसी बीच
मीरबाँकी ने छिपकर
गोली चलायी जो पहले
ही से घायल देवीदीन पाण्डेय
जी को लगी और
वो जन्मभूमि की रक्षा में वीर
गति को प्राप्त
हुए..जन्मभूमि फिर से 90 हजार हिन्दुओं के रक्त से लाल
हो गयी। देवीदीन पाण्डेय के
वंशज सनेथू ग्राम के ईश्वरी पांडे का पुरवा नामक
जगह
पर अब भी मौजूद हैं॥
पाण्डेय जी की मृत्यु के १५ दिन बाद
हंसवर के महाराज
रणविजय सिंह ने सिर्फ २५ हजार सैनिकों के साथ
मीरबाँकी की विशाल और
शस्त्रों से सुसज्जित सेना से
रामलला को मुक्त कराने के लिए आक्रमण किया । 10
दिन तक युद्ध चला और महाराज जन्मभूमि के रक्षार्थ
वीरगति को प्राप्त हो गए। जन्मभूमि में 25 हजार
हिन्दुओं का रक्त फिर बहा।
रानी जयराज कुमारी हंसवर के
स्वर्गीय महाराज
रणविजय सिंह की पत्नी थी।
जन्मभूमि की रक्षा में
महाराज के वीरगति प्राप्त करने के बाद
महारानी ने
उनके कार्य को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया और
तीन
हजार नारियों की सेना लेकर उन्होंने जन्मभूमि पर
हमला बोल
दिया और हुमायूं के समय तक उन्होंने छापामार युद्ध
जारी रखा। रानी के गुरु
स्वामी महेश्वरानंद जी ने
रामभक्तों को इकठ्ठा करके सेना का प्रबंध करके जयराज
कुमारी की सहायता की। साथ
ही स्वामी महेश्वरानंद
जी ने
सन्यासियों की सेना बनायीं इसमें उन्होंने
२४
हजार सन्यासियों को इकठ्ठा किया और रानी जयराज
कुमारी के साथ , हुमायूँ के समय में कुल १० हमले
जन्मभूमि के उद्धार के लिए किये। १०वें हमले में
शाही सेना को काफी नुकसान हुआ और
जन्मभूमि पर
रानी जयराज कुमारी का अधिकार हो गया।
लेकिन लगभग एक महीने बाद हुमायूँ ने
पूरी ताकत से
शाही सेना फिर भेजी ,इस युद्ध में
स्वामी महेश्वरानंद
और रानी कुमारी जयराज
कुमारी लड़ते हुए
अपनी बची हुई
सेना के साथ मारे गए और जन्मभूमि पर
पुनः मुगलों का अधिकार हो गया। श्रीराम
जन्मभूमि एक बार फिर कुल 24 हजार सन्यासियों और 3
हजार वीर नारियों के रक्त से लाल
हो गयी।
रानी जयराज कुमारी और
स्वामी महेश्वरानंद जी के
बाद यद्ध का नेतृत्व
स्वामी बलरामचारी जी ने
अपने
हाथ में ले लिया।
स्वामी बलरामचारी जी ने गांव
गांव
में घूम कर
रामभक्त हिन्दू युवकों और सन्यासियों की एक
मजबूत
सेना तैयार करने का प्रयास किया और जन्मभूमि के
उद्धारार्थ २० बार आक्रमण किये. इन २० हमलों में काम
से
काम १५ बार स्वामी बलरामचारी ने
जन्मभूमि पर
अपना अधिकार कर लिया मगर ये अधिकार अल्प समय के
लिए रहता था थोड़े दिन बाद
बड़ी शाही फ़ौज
आती थी और जन्मभूमि पुनः मुगलों के
अधीन
हो जाती थी..जन्मभूमि में लाखों हिन्दू
बलिदान होते
रहे।
उस समय का मुग़ल शासक अकबर था।
शाही सेना हर दिन
के इन युद्धों से कमजोर हो रही थी..
अतः अकबर ने
बीरबल और टोडरमल के कहने पर खस
की टाट से उस
चबूतरे पर ३ फीट का एक छोटा सा मंदिर बनवा दिया.
लगातार युद्ध करते रहने के कारण
स्वामी बलरामचारी का स्वास्थ्य
गिरता चला गया था और प्रयाग कुम्भ के अवसर पर
त्रिवेणी तट पर
स्वामी बलरामचारी की मृत्यु
हो गयी ..
इस प्रकार बार-बार के आक्रमणों और हिन्दू जनमानस के
रोष एवं हिन्दुस्थान पर
मुगलों की ढीली होती पकड़
से
बचने का एक राजनैतिक प्रयास की अकबर
की इस
कूटनीति से कुछ दिनों के लिए जन्मभूमि में रक्त
नहीं बहा।
यही क्रम शाहजहाँ के समय
भी चलता रहा। फिर
औरंगजेब के हाथ सत्ता आई वो कट्टर मुसलमान था और
उसने समस्त भारत से काफिरों के सम्पूर्ण सफाये
का संकल्प लिया था। उसने लगभग 10 बार अयोध्या मे
मंदिरों को तोड़ने का अभियान चलकर यहाँ के
सभी प्रमुख मंदिरों की मूर्तियों को तोड़
डाला।
औरंगजेब के हाथ सत्ता आई वो कट्टर मुसलमान था और
उसने समस्त भारत से काफिरों के सम्पूर्ण सफाये
का संकल्प लिया था। उसने लगभग 10 बार अयोध्या मे
मंदिरों को तोड़ने का अभियान चलकर यहाँ के
सभी प्रमुख मंदिरों की मूर्तियों को तोड़
डाला।
औरंगजेब के समय में समर्थ गुरु श्री रामदास
जी महाराज
जी के शिष्य श्री वैष्णवदास
जी ने जन्मभूमि के
उद्धारार्थ 30 बार आक्रमण किये। इन आक्रमणों मे
अयोध्या के आस पास के गांवों के सूर्यवंशीय
क्षत्रियों ने
पूर्ण सहयोग दिया जिनमे सराय के ठाकुर सरदार
गजराज सिंह और राजेपुर के कुँवर गोपाल सिंह
तथा सिसिण्डा के ठाकुर जगदंबा सिंह प्रमुख थे। ये सारे
वीर ये जानते हुए
भी की उनकी सेना और
हथियार
बादशाही सेना के सामने कुछ
भी नहीं है अपने जीवन के
आखिरी समय तक शाही सेना से
लोहा लेते रहे। लम्बे समय
तक चले इन युद्धों में रामलला को मुक्त कराने के लिए
हजारों हिन्दू वीरों ने अपना बलिदान दिया और
अयोध्या की धरती पर उनका रक्त
बहता रहा।
ठाकुर गजराज सिंह और उनके साथी क्षत्रियों के
वंशज
आज भी सराय मे मौजूद हैं। आज
भी फैजाबाद जिले के आस पास के
सूर्यवंशीय क्षत्रिय
सिर पर
पगड़ी नहीं बांधते,जूता नहीं पहनते,
छता नहीं लगाते, उन्होने अपने पूर्वजों के सामने ये
प्रतिज्ञा ली थी की जब
तक श्री राम जन्मभूमि का उद्धार
नहीं कर लेंगे तब तक
जूता नहीं पहनेंगे,छाता नहीं लगाएंगे,
पगड़ी नहीं पहनेंगे। 1640
ईस्वी में औरंगजेब ने मन्दिर
को ध्वस्त करने के लिए जबांज खाँ के नेतृत्व में एक
जबरजस्त सेना भेज दी थी, बाबा वैष्णव
दास के साथ
साधुओं की एक सेना थी जो हर विद्या मे
निपुण थी इसे
चिमटाधारी साधुओं
की सेना भी कहते थे । जब
जन्मभूमि पर जबांज खाँ ने आक्रमण किया तो हिंदुओं के
साथ चिमटाधारी साधुओं
की सेना की सेना मिल
गयी और उर्वशी कुंड नामक जगह पर
जाबाज़
खाँ की सेना से सात दिनों तक भीषण युद्ध
किया ।
चिमटाधारी साधुओं के चिमटे के मार से
मुगलों की सेना भाग खड़ी हुई। इस
प्रकार चबूतरे पर
स्थित मंदिर की रक्षा हो गयी । जाबाज़
खाँ की पराजित सेना को देखकर औरंगजेब बहुत
क्रोधित
हुआ और उसने जाबाज़ खाँ को हटाकर एक अन्य
सिपहसालार सैय्यद हसन अली को 50 हजार
सैनिकों की सेना और तोपखाने के साथ
अयोध्या की ओर
भेजा और साथ मे ये आदेश
दिया की अबकी बार
जन्मभूमि को बर्बाद करके वापस आना है ,यह समय सन्
1680 का था । बाबा वैष्णव दास ने सिक्खों के
गुरु गुरुगोविंद सिंह से युद्ध मे सहयोग के लिए पत्र के
माध्यम संदेश भेजा । पत्र पाकर गुरु गुरुगोविंद सिंह
सेना समेत तत्काल अयोध्या आ गए और ब्रहमकुंड पर
अपना डेरा डाला । ब्रहमकुंड वही जगह
जहां आजकल
गुरुगोविंद सिंह की स्मृति मे
सिक्खों का गुरुद्वारा बना हुआ है। बाबा वैष्णव दास
एवं सिक्खों के गुरुगोविंद सिंह रामलला की रक्षा हेतु
एकसाथ रणभूमि में कूद पड़े ।इन वीरों कें सुनियोजित
हमलों से मुगलो की सेना के पाँव उखड़ गये सैय्यद
हसन
अली भी युद्ध मे मारा गया। औरंगजेब
हिंदुओं की इस
प्रतिक्रिया से स्तब्ध रह गया था और इस युद्ध के बाद
4 साल तक उसने अयोध्या पर हमला करने
की हिम्मत
नहीं की। औरंगजेब ने सन् 1664 मे
एक बार फिर
श्री राम जन्मभूमि पर आक्रमण किया । इस
भीषण हमले में शाही फौज ने लगभग
10 हजार से
ज्यादा हिंदुओं की हत्या कर
दी नागरिकों तक
को नहीं छोड़ा। जन्मभूमि हिन्दुओं के रक्त से लाल
हो गयी। जन्मभूमि के अंदर नवकोण के एक कंदर्प
कूप नाम
का कुआं था, सभी मारे गए हिंदुओं
की लाशें मुगलों ने उसमे
फेककर चारों ओर चहारदीवारी उठा कर
उसे घेर दिया।
आज भी कंदर्पकूप “गज शहीदा” के
नाम से प्रसिद्ध है,और
जन्मभूमि के पूर्वी द्वार पर स्थित है।
शाही सेना ने
जन्मभूमि का चबूतरा खोद डाला बहुत दिनो तक वह
चबूतरा गड्ढे के रूप मे वहाँ स्थित था । औरंगजेब के क्रूर
अत्याचारो की मारी हिन्दू जनता अब उस
गड्ढे पर
ही श्री रामनवमी के दिन
भक्तिभाव से अक्षत,पुष्प और
जल चढाती रहती थी. नबाब
सहादत अली के समय 1763
ईस्वी में जन्मभूमि के रक्षार्थ अमेठी के
राजा गुरुदत्त
सिंह और पिपरपुर के
राजकुमार सिंह के नेतृत्व मे बाबरी ढांचे पर पुनः पाँच
आक्रमण किये गये जिसमें हर बार हिन्दुओं
की लाशें
अयोध्या में गिरती रहीं। लखनऊ गजेटियर
मे कर्नल हंट
लिखता है की
“ लगातार हिंदुओं के हमले से ऊबकर नबाब ने हिंदुओं और
मुसलमानो को एक साथ नमाज पढ़ने और भजन करने
की इजाजत दे दी पर सच्चा मुसलमान
होने के नाते उसने
काफिरों को जमीन नहीं सौंपी।
“लखनऊ गजेटियर पृष्ठ
62” नासिरुद्दीन हैदर के समय मे
मकरही के राजा के
नेतृत्व में जन्मभूमि को पुनः अपने रूप मे लाने के लिए
हिंदुओं के तीन आक्रमण हुये जिसमें
बड़ी संख्या में हिन्दू
मारे गये। परन्तु तीसरे आक्रमण में डटकर
नबाबी सेना का सामना हुआ 8वें दिन हिंदुओं
की शक्ति क्षीण होने
लगी ,जन्मभूमि के मैदान मे हिन्दुओं
और मुसलमानो की लाशों का ढेर लग गया । इस संग्राम
मे भीती,हंसवर,,मकर
ही,खजुरहट,दीयरा
अमेठी के
राजा गुरुदत्त सिंह आदि सम्मलित थे। हारती हुई
हिन्दू
सेना के साथ वीर चिमटाधारी साधुओं
की सेना आ
मिली और इस युद्ध मे शाही सेना के
चिथड़े उड गये और उसे
रौंदते हुए हिंदुओं ने जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया।
मगर हर बार की तरह कुछ दिनो के बाद विशाल
शाही सेना ने पुनः जन्मभूमि पर अधिकार कर
लिया और
हजारों हिन्दुओं को मार डाला गया। जन्मभूमि में
हिन्दुओं का रक्त प्रवाहित होने लगा। नावाब
वाजिदअली शाह के समय के समय मे पुनः हिंदुओं ने
जन्मभूमि के उद्धारार्थ आक्रमण किया । फैजाबाद
गजेटियर में कनिंघम ने लिखा
"इस संग्राम मे बहुत ही भयंकर खूनखराबा हुआ
।दो दिन
और रात होने वाले इस भयंकर युद्ध में सैकड़ों हिन्दुओं के
मारे जाने के बावजूद हिन्दुओं नें राम जन्मभूमि पर
कब्जा कर लिया। क्रुद्ध हिंदुओं की भीड़
ने कब्रें तोड़
फोड़ कर बर्बाद कर डाली मस्जिदों को मिसमार करने
लगे और पूरी ताकत से मुसलमानों को मार-मार कर
अयोध्या से खदेड़ना शुरू किया।मगर हिन्दू भीड़ ने
मुसलमान स्त्रियों और बच्चों को कोई
हानि नहीं पहुचाई।
अयोध्या मे प्रलय मचा हुआ था ।
इतिहासकार कनिंघम लिखता है की ये
अयोध्या का सबसे
बड़ा हिन्दू मुस्लिम बलवा था।
हिंदुओं ने अपना सपना पूरा किया और औरंगजेब
द्वारा विध्वंस किए गए चबूतरे को फिर वापस
बनाया । चबूतरे पर तीन फीट
ऊँची खस की टाट से एक
छोटा सा मंदिर बनवा लिया ॥जिसमे
पुनः रामलला की स्थापना की गयी।
कुछ
जेहादी मुल्लाओं को ये बात स्वीकार
नहीं हुई और
कालांतर में जन्मभूमि फिर हिन्दुओं के हाथों से निकल
गयी। सन 1857 की क्रांति मे बहादुर
शाह जफर के समय
में बाबा रामचरण दास ने एक मौलवी आमिर
अली के साथ
जन्मभूमि के उद्धार का प्रयास किया पर 18 मार्च सन
1858 को कुबेर टीला स्थित एक
इमली के पेड़ मे
दोनों को एक साथ अंग्रेज़ो ने फांसी पर लटका दिया ।
जब अंग्रेज़ो ने ये देखा कि ये पेड़ भी देशभक्तों एवं
रामभक्तों के लिए एक स्मारक के रूप मे विकसित
हो रहा है तब उन्होने इस पेड़ को कटवा कर इस
आखिरी निशानी को भी मिटा दिया...
इस प्रकार अंग्रेज़ो की कुटिल नीति के
कारण
रामजन्मभूमि के उद्धार का यह एकमात्र प्रयास विफल
हो गया ... अन्तिम बलिदान ...
३० अक्टूबर १९९० को हजारों रामभक्तों ने वोट-बैंक के
लालची मुलायम सिंह यादव के
द्वारा खड़ी की गईं अनेक
बाधाओं को पार कर अयोध्या में प्रवेश किया और
विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वज फहरा दिया। लेकिन
२ नवम्बर १९९० को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव
ने
कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें
सैकड़ों रामभक्तों ने अपने जीवन
की आहुतियां दीं।
सरकार ने
मृतकों की असली संख्या छिपायी परन्तु
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार सरयू तट
रामभक्तों की लाशों से पट गया था। ४ अप्रैल १९९१
को कारसेवकों के हत्यारे, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन
मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने
इस्तीफा दिया।
लाखों राम भक्त ६ दिसम्बर को कारसेवा हेतु
अयोध्या पहुंचे और राम जन्मस्थान पर बाबर के
सेनापति द्वार बनाए गए अपमान के प्रतीक
मस्जिदनुमा ढांचे को ध्वस्त कर दिया। परन्तु हिन्दू
समाज के अन्दर व्याप्त घोर संगठनहीनता एवं
नपुंसकता के कारण आज भी हिन्दुओं के सबसे बड़े
आराध्य
भगवान श्रीराम एक फटे हुए तम्बू में विराजमान हैं।
जिस जन्मभूमि के उद्धार के लिए हमारे पूर्वजों ने
अपना रक्त पानी की तरह बहाया। आज
वही हिन्दू
बेशर्मी से इसे "एक विवादित स्थल" कहता है।
सदियों से हिन्दुओं के साथ रहने वाले मुसलमानों ने आज
भी जन्मभूमि पर
अपना दावा नहीं छोड़ा है।
वो यहाँ किसी भी हाल में मन्दिर
नहीं बनने देना चाहते
हैं ताकि हिन्दू हमेशा कुढ़ता रहे और उन्हें
नीचा दिखाया जा सके।
जिस कौम ने अपने
ही भाईयों की भावना को नहीं समझा वो सोचते
हैं
हिन्दू उनकी भावनाओं को समझे। आज तक
किसी भी मुस्लिम संगठन ने जन्मभूमि के
उद्धार के लिए
आवाज नहीं उठायी, प्रदर्शन
नहीं किया और सरकार
पर दबाव नहीं बनाया आज भी वे
बाबरी-विध्वंस
की तारीख 6 दिसम्बर को काला दिन मानते
हैं। और
मूर्ख हिन्दू समझता है कि राम
जन्मभूमि राजनीतिज्ञों और मुकदमों के कारण
उलझा हुआ
है।
ये लेख पढ़कर जिन हिन्दुओं को शर्म
नहीं आयी वो कृपया अपने घरों में राम
का नाम
ना लें...अपने रिश्तेदारों से कह दें कि उनके मरने के बाद
कोई "राम नाम" का नारा भी नहीं लगाएं।
विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ता एक दिन श्रीराम
जन्मभूमि का उद्धार कर वहाँ मन्दिर अवश्य बनाएंगे।
चाहे अभी और कितना ही बलिदान
क्यों ना देना पड़े।
जय श्री राम।।।
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Sunday, December 27, 2015

मोदी जी की लाहौर यात्रा

मोदी जी की लाहौर यात्रा का विरोध करने वालों को जवाब देती एक कविता:
जिसकी आँखों में भारत की उन्नति का उजियारा है,
जिसकी गलबहियां करने को व्याकुल भी जग सारा है!
अमरीका जापान चीन इंग्लैंण्ड साथ में बोले हैं,
घूम घूम कर जिसने दरवाजे विकास के खोले हैं!
जिसके सभी विदेशी दौरे सफल कहानी छोड़ गए,
बड़े बड़े तुर्रम खां तक भी हाथ सामने जोड़ गए!
यूरेनियम दिया सिडनी ने, रूस मिसाइल देता है,
बंगलादेश सरहदों पर चुपचाप सुलह कर लेता है!
उन्हीं विदेशी दौरों की अब खिल्ली आज उड़ाते हैं?
देश लूटने वाले उसको कूटनीति सिखलाते हैं!
कायम था ग्यारह वर्षों से, वो वनवास बदल डाला,
मोदी ने लाहौर पहुंचकर सब इतिहास बदल डाला!
जिस धरती पर हिन्द विरोधी नारे छाये रहते हैं,
जिस धरती पर नाग विषैले मुहँ फैलाये रहते हैं!
जिस धरती पर हाफ़िज़ जैसे लेकर बैठे आरी हों,
और हमारे मोदी जी की देते रोज सुपारी हों!
जहाँ सुसाइड बम फटते हैं रोज गली चौराहों में,
बारूदी कालीन बिछी पड़ी जहाँ सियासी राहों में!
जहाँ होलियाँ बच्चों के संग खेली खूनी जाती हों,
बेनजीर सी नेता भी गोली से भूनी जाती हों!
उसी पाक में पहुंचे मोदी, शोर मचाया संसद ने,
सभा बीच रावण की देखो पैर जमाया अंगद ने!
बिना सुरक्षा बिना योजना जाना एक दिलेरी है,
लगता है उलझन सुलझाने में बस कुछ पल की देरी है!
लाहौरी दरबार समूचा ही अंगुली पर नाचा है,
पड़ा मणीशंकर के गालों पर भी एक तमाचा है!
ये समूचा विश्व कहे अब देखो जिगरा मोदी का,
जांबाजी से भरा हुआ है कतरा कतरा मोदी का!
अंगारों को ठंडा करदे, उसे पसीना कहते है,
इसको ही तो प्यारे 56" इंची सीना कहते हैं!!
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